Breaking News
शिक्षा विभाग के अधिकारियों को भी दी जाएगी अनिवार्य सेवानिवृत्ति
नवरात्रि के पहले दिन भारत की भूमि से शुरू हुए कैलाश पर्वत के पवित्र दर्शन
टेंशन लेने का नहीं-देने का
मोहम्मद अजहरुद्दीन की बढ़ी मुश्किलें, ED ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में किया तलब
सीएम धामी ने बल्लभगढ़ में रोड शो कर भाजपा का किया प्रचार
मुख्य सचिव ने असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत महिलाओं के पीएमएमवीवाई में पंजीकरण करवाने के दिए निर्देश
ऋषिकेश में जाम से परेशान युवक ने विधायक की गाड़ी पर चढ़कर किया हंगामा 
लापता सैनिक नारायण सिंह का पार्थिव शरीर पहुंचा घर, 56 साल बाद दी अंतिम विदाई 
राजकुमार-तृप्ति की फिल्म ‘विक्की विद्या का वो वाला वीडियो’ का नया गाना ‘मेरे महबूब’ जारी

बहुमत गंवाने की तलवार

एनडीए अगर एकजुट रहा, तो भी सहयोगी दलों के तेवर गुजरे दस वर्षों जैसे नहीं रहेंगे। ऐसे में गठबंधन और सरकार का नेतृत्व करना एक नए तरह के कौशल की मांग करेगा। नरेंद्र मोदी ऐसे कौशल के लिए नहीं जाने जाते। दो राज्यों- उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्त्वाकांक्षाओं और सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे पर तगड़ा प्रहार किया। इनके अलावा कई और राज्यों ने पार्टी के वर्चस्व में सेंध लगाई। इनमें हरियाणा, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, झारखंड एवं कुछ अन्य राज्यों का जिक्र किया जा सकता है। भाजपा को ओडिशा, तेलंगाना, और यहां तक कि केरल में भी अनपेक्षित सफलताएं मिलीं।

लेकिन यह कामयाबी जिन राज्यों ने उसे झटका दिया, उसकी भरपाई करने लायक नहीं है। नतीजा यह है कि पार्टी के हाथ से बहुमत निकल गया है। बल्कि बहुमत से उसकी दूरी अच्छी-खासी है। हालांकि भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए को जरूर स्पष्ट बहुमत मिला है, लेकिन अब जो सियासी उभरी है, उसमें कौन किस गठबंधन में रहेगा, यह फिलहाल अनिश्चित हो गया है। फिलहाल निश्चित यह है कि एनडीए अगर एकजुट रहा, तो भी सहयोगी दलों के तेवर गुजरे दस वर्षों जैसे नहीं रहेंगे। ऐसे में गठबंधन और सरकार का नेतृत्व करना एक नए तरह के कौशल की मांग करेगा। नरेंद्र मोदी ऐसे कौशल के लिए नहीं जाने जाते। उनकी पहचान आदेशात्मक अंदाज में शासन करने वाले नेता की रही है।

इसीलिए एनडीए को बहुमत मिलने और भाजपा के सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के बावजूद मोदी-शाह की जोड़ी के लिए पहले की तरह राज करना आसान नहीं होगा। अत: कहा जा सकता है कि 2024 के जनादेश से देश के राजनीतिक गतिशास्त्र में भारी बदलाव आ सकता है। इस चुनाव ने इस धारणा को तोड़ दिया है कि आरएसएस के एजेंडे और मोनोपॉली कॉरपोरेट के साथ उसके गठजोड़ ने भारतीय राजसत्ता पर अपना अटूट शिकंजा कस लिया है।

नरेंद्र मोदी इसी शिकंजे का प्रतीक समझे जा रहे थे। इस शिकंजे में प्रधानमंत्री का भरोसा इतना गहरा था कि जन-कल्याण के एजेंडे को वे ‘रेवड़ी’ बताने लगे। इसकी कीमत उनकी पार्टी को चुकानी पड़ी है। नतीजतन, मोदी अब अपने पुराने अंदाज में राज नहीं कर पाएंगे। वे किस अंदाज में शासन करते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा। अब उन्हें हमेशा यह याद रखना होगा कि बहुमत गंवाने की तलवार उनके सिर पर लटकी हुई है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top