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खदबदा रहा है उत्तराखंड बीजेपी के अंदर बहुत कुछ… क्या बाहर निकलने को तैयार है लावा

देहरादून में बीजेपी की विस्तारित कार्यसमिति को बीते 10 दिन से ज़्यादा हो गए हैं लेकिन उसमें दिए गए दो बयान अब तक राजनीतिक हल्कों में गूंज रहे हैं. इनके निहितार्थों पर चर्चा हो रही है और संभावना जताई जा रही है कि उत्तराखंड बीजेपी में अंदर बहुत कुछ खदबदा रहा है जो जल्द बाहर आ सकता है.

पू्र्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कार्यकर्ताओं की अनदेखी न करने और चुनावों में उम्मीदवारों को थोपने को लेकर चेतावनी दी तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जाति-क्षेत्रवाद के नाम पर भड़काने वाले ‘शेर की खाल में छुपे भेड़ियों’ को चेताया कि वह कामयाब नहीं होंगे.

शेर की खाल में भेड़िये…  

15 जुलाई को देहरादून में हुई बीजेपी की विस्तारित कार्यकारिणी की बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का बयान सर्वाधिक चर्चा में रहा.

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा मंगलौर और बदरीनाथ विधानसभा सीटों पर हार के लिए उम्मीदवारों के चयन पर इशारा करते हुए कहा, “सबसे राय मशविरा लेकर बातचीत करते हुए, थोपने का काम मत करना. अब तो जनता आगे बढ़ गई, हम पीछे हो गए भईया. नेता तो बहुत पीछे हो गया है. जनता आगे बढ़ गई है और उसके साथ कार्यकर्ता चल रहा है, मेहनत कर रहा है. इसलिए हमारे यहां कहते हैं न, नेता आधारित नहीं कार्यकर्ता आधारित.”

इसके साथ ही उन्होंने मंच पर बैठे नेताओं को देखकर कहा, “यह जो हम यहां बैठे हैं, नेता नहीं हैं, कोई बड़ा आदमी नहीं है… दायित्व. आज तू है तो कल मैं हूं… आज तू है तो कल मैं हूं. सबसे पीछे वाला यहां बैठ गया और यहां वाला पीछे चला जाए… कहीं भी बैठो, यह ज़मीन मत छोड़ो. कार्यकर्ता को मत भूलो.”

तीरथ सिंह रावत के बयान पर कार्यक्रम में सबसे ज़्यादा तालियां बजीं और समर्थन मिला. लेकिन उनके बयान ने देहरादून से दिल्ली तक खलबली भी मचा दी. जो बात लोग दबी ज़ुबान से कह रहे थे, वह उन्होंने खुलकर कह दी कि कार्यकर्ताओं की नाराज़गी ठीक नहीं और पैराशूट प्रत्याशी नहीं चलेंगे.

इससे पहले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मंच से चेतावनी दी कि वह शेर की खाल में छुपे हुए भेड़ियों को कामयाब नहीं होने देंगे. उन्होंने कहा, “कुछ लोग आर्थिक, क्षेत्रीय और जातीय भावना को भड़काने का कुत्सित प्रयास लगातार करते रहते हैं… कभी रजिस्ट्रेशन को लेकर झूठी बातें फैलाते हैं, कभी जातिवाद, कभी क्षेत्रवाद के नाम पर समाज को तोड़ने का काम करते हैं लेकिन मै आज इस मंच से आपको कह देना चाहता हूं कि जो शेर की खाल में छुपे हुए भेड़िये हैं, उन्हें ये बता देना चाहता हूं कि उनका ये प्रयास कभी हमारे रहते हुए सफल नहीं होगा, किसी कीमत पर हम सफल नहीं होने देंगे क्योंकि पूरे प्रदेश का समेकित विकास करना हमारा संकल्प है.”

तीरथ सिंह रावत का बयान तो स्पष्ट था और उसका संदेश भी लेकिन सीएम धामी ने किन भेडियों की बात ही है जो शेर की खाल में छुपे हुए हैं.

यह समझने के लिए हमने बात की बीजेपी को कवर करने वाले कुछ रिपोर्टर्स से और राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर योगेश धस्माना से. सभी का कहना था कि ज़ाहिर तौर पर यह विपक्षी नहीं हो सकते, पार्टी के अंदर वालों की तरफ़ ही इशारा है.

बिना आग धुआं नहीं उठता…

डॉक्टर योगेश धस्माना सीएम के भाषण का ही ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि सीएम जिस बात को नकार रहे हैं उसमें कुछ तो दम है, आखिर बिना आग के धुआं नहीं उठता… क्षेत्रवाद की बातें सरकार और पार्टी के अंदर-बाहर हो रही हैं.

वह कहते हैं कि उत्तराखंड बीजेपी के अंदर स्पष्ट तौर पर खेमेबंदी है और एक खेमे का नेतृत्व मुख्यमंत्री कर रहे हैं. उनके खेमे ने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के ख़िलाफ़ पूर्व पत्रकार और खानपुर से विधायक उमेश कुमार को शह दी जो खुद हरिद्वार से लोकसभा चुनाव लड़े, पौड़ी से पत्रकार आशुतोष नेगी को चुनाव लड़वाया और बदरीनाथ विधानसभा उपचुनाव में पत्रकार नवल खाली को उतारा.

धस्माना कहते हैं कि इस खेमे को लगता था कि त्रिवेंद्र हरिद्वार में चुनाव जाएंगे तो उनका खेल खत्म और अगर जीत गए तो दिल्ली चले जाएंगे, राज्य में उनका दखल नहीं रहेगा.

लेकिन ऐसा हुआ नहीं. चुनाव के बाद बनी परिस्थितियों में अनिल बलूनी और त्रिवेंद्र सिंह रावत साथ आ गए हैं इसलिए मुख्यमंत्री को लग रहा है कि पार्टी में उनके ख़िलाफ़ गुटबंदी हो रही है.

लंबे समय से बीजेपी को कवर कर रहे एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि दरअसल इसकी भूमिका चुनाव से पहले ही बन गई थी जब पूर्व मु्ख्यमंत्री त्रिवेंद्र और पूर्व राज्यसभा सांसद की वाई प्लस सुरक्षा को घटाकर वाई श्रेणी की कर दिया गया था.

अनिल बलूनी ने तो इस बारे में कुछ नहीं कहा लेकिन त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 11 मई को मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर वाई प्लस श्रेणी की सुरक्षा बहाल करने का अनुरोध किया. इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो उन्होंने 24 मई को गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखा लेकिन लोकसभा चुनाव में व्यस्त शाह ने भी इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

अब चार-पांच दिन पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्रित्व काल में उनके औद्योगिक सलाहकार रहे केएस पंवार के स्वामित्व वाले चैनल ने सोशल मीडिया पर दोनों नेताओं की सुरक्षा हटाए जाने को लेकर पोस्ट कर दिया. इसके बाद यह मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया.

हालांकि उत्तराखंड पुलिस ने इसका खंडन करने में देर नहीं और ख़बर को भ्रामक बताया. उत्तराखंड पुलिस ने अपने फ़ेसबुक पर लिखा, “महानुभावों को प्रदत्त सुरक्षा की प्रत्येक 06 माह में सुरक्षा समीक्षा कराए जाने का प्रावधान है. वर्तमान में शासन/पुलिस मुख्यालय स्तर पर उक्त महानुभावों की सुरक्षा को हटाए जाने को कोई निर्णय नहीं लिया गया है. निकट भविष्य में विभिन्न महानुभावों को प्रदत्त सुरक्षा के सम्बन्ध में राज्य सुरक्षा समिति (SSRC) की बैठक शासन स्तर पर प्रस्तावित है.”

यहां यह बताना ज़रूरी है कि न्यूज़ चैनल आज तक की एक ख़बर के अनुसार उत्तराखंड में जिन लोगों को वाई प्लस सुरक्षा हासिल है उनमें खानपुर विधायक उमेश कुमार भी शामिल हैं, उनको मिलने वाला एस्कॉर्ट उनके निजी खर्च पर है.

आखिरी जंग तो दिल्ली में लड़ी जानी है

डॉक्टर योगेश धस्माना कहते हैं कि उत्तराखंड के नेतृत्व का फ़ैसला तो दिल्ली से ही होता रहा है और मौजूदा मुख्यमंत्री का मामला भी अलग नहीं है. इसलिए उन्होंने दिल्ली में गुजरात लॉबी को प्रभावित करने की पूरी कोशिशें की हैं.

लेकिन अब दिल्ली में भी त्रिवेंद्र सिंह रावत और अनिल बलूनी ने पेशबंदी शुरू कर दी है, इसलिए मुख्यमंत्री की राह अब वहां भी आसान नहीं है. ‘शेर की खाल में छुपे भेड़ियों’ वाला बयान उनकी बेचैनी को दर्शाता है.

बीजेपी को कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार एक और बात की ओर ध्यान दिलाते हैं, जो संभवतः ख़बरों में नहीं आई.

लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद मुख्यमंत्री धामी की बाकी तीन सांसदों से तो शिष्टाचार भेंट हुई लेकिन त्रिवेंद्र सिंह रावत और अनिल बलूनी से नहीं. इन दोनों सांसदों ने भी मुख्यमंत्री से मिलने की कोशिश नहीं की.

डॉक्टर धस्माना कहते हैं कि अभी तो ऊपर से शांति दिखाई दे रही है क्योंकि बीजेपी आलाकमान का ध्यान उत्तर प्रदेश में है लेकिन अगर वहां कोई उलटफेर होता है तो उत्तराखंड में उसका असर पड़ना तय है.

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